Sunday, November 03, 2024
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Movie Review: ठहाके लगाने पर मजबूर कर देगी आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’

साल 2013 में निर्देशक आर एस प्रसन्ना ने ‘कल्याण समायल साधम’ नाम की एक फिल्म बनाई थी, ये ऐसे आदमी की कहानी थी जो इरेक्टाइल डिस्फंक्शन से पीड़ित होता है

Jyoti Jaiswal
Published on: September 06, 2017 14:24 IST
shubh mangal savdhan
Photo: PTI shubh mangal savdhan
  • फिल्म रिव्यू: शुभ मंगल सावधान
  • स्टार रेटिंग: 3 / 5
  • पर्दे पर: 1 सितंबर 2017
  • डायरेक्टर: आर एस प्रसन्ना
  • शैली: कॉमेडी ड्रामा

साल 2013 में निर्देशक आर एस प्रसन्ना ने ‘कल्याण समायल साधम’ नाम की एक फिल्म बनाई थी, ये ऐसे आदमी की कहानी थी जो इरेक्टाइल डिस्फंक्शन से पीड़ित होता है, अब इसी फिल्म को आर एस प्रसन्ना ने हिंदी में ‘शुभ मंगल सावधान’ बनाई है। आयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर की फिल्म दिल्ली की मिडिल क्लास फैमिली की है। ऐसी समस्या जिसपर लोग बात करने पर भी झिझकते हैं उस समस्या को कॉमेडी के जरिए सामने लाना वो भी इस तरह से की कहीं से भी फिल्म अश्लील न लगे, ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है। इतने बोल्ड विषय पर बनी इस फिल्म को बिना किसी कट के सेंसर से यू/ए सर्टिफिकेट मिला है यही इस बात का सबूत है।

यह फिल्म दिल्ली के मिडिल क्लास के दो परिवारों की कहानी है। फिल्म के नायक मुदित शर्मा (आयुष्मान खुराना) को सुगंधा (भूमि पेडनेकर) नाम की एक लड़की से प्यार होता है, दोनों करीब आते हैं और दोनों की शादी तय हो जाती है। शादी से पहले मुदित और सुगंधा करीब आ जाते हैं तो सुगंधा के साथ दर्शकों को भी पता चलता है कि मुदित को ‘जेंट्स प्रॉब्लम’ है, और वो सेक्स नहीं कर सकता है। दोनों की शादी की तारीख तक तय हो जाती है लेकिन सुगंधा ये तय नहीं कर पाती कि वो क्या करे? मुदित के दोस्त कभी उसे उत्तेजक फिल्में दिखाते हैं तो कभी किसी पहाड़ी और बंगाली बाबा के पास ले जाते हैं। लेकिन कोई फायदा नहीं होता। दोनों के परिवारवालों को भी इस बारे में पता चलता है, सुगंधा के घरवाले जहां शादी तोड़ने की बात करते हैं वहीं मुदित के घरवाले सुगंधा को दोष देते हुए कह देते हैं लड़की में ही कमी है। खैर, मुदित और सुगंधा एक  दूसरे से प्रेम करते हैं इसलिए वो एक-दूसरे का साथ देते हैं। मगर आगे क्या होगा क्या दोनों की शादी होगी और क्या मुदित ठीक हो पाएगा, इसी के इर्द-गिर्द आगे की कहानी बुनी गई है।

ayushmann khurrana bhumi pednekar

फिल्म के डायलॉग्स, वन लाइनर और प्रतीकात्माक (सिंबोलिक) चीजें आपको पेट पकड़कर हंसने पर मजबूर कर देंगे। समस्या को समझाने के लिए जिस तरह से प्रतीकों का सहारा लिया गया है वो सराहनीय है।

फिल्म की शुरूआत में फिल्मों के सीन दिखाना और फिल्म के बीच एक सीन में नीलेश मिश्रा की रेडियो कहानी का इस्तेमाल एक नए तरह का प्रयोग था जो तारीफ के काबिल है।

फिल्म इंटरवल तक बहुत अच्छी चलती है, मगर इंटरवल के बाद अचानक से फिल्म कन्फ्यूजिंग हो जाती है। फिल्म अलग ही दिशा मे चली जाती है और क्लाइमैक्स आपका मजा किरकिरा कर देता है। जिस समस्या को लेकर फिल्म बनाई गई थी उस समस्या से फिल्म हट जाती है और अलग ही मुद्दे पर चली जाती है। मुदित का मां-बाप पर इतना गुस्सा होना अखरता है।

अभिनय- आयुष्मान खुराना ने बहुत अच्छा अभिनय किया है। उनकी एक्टिंग नेचुरल लगी है, ऐस शख्स का किरदार निभाना आसान नहीं था, मगर विक्की डोनर में काम कर चुके आयुष्मान इस बार भी बेहद सहज थे। भूमि पेडनेकर कमाल की अदाकारा हैं, दम लगाके हईशा और टॉयलेट एक प्रेम कथा के बाद ये उनकी तीसरी फिल्म थी। तीनों ही फिल्मों में भूमि की अदाकारी सराहनीय है। उनमें आगे जाने का हुनर है। फिल्म के सह-कलाकार भी अपने-अपने रोल में परफेक्ट थे। सीमा पाहवा, ब्रजेंद्र काले, चितरंजन त्रिपाठी और नीरज सूद जैसे कलाकारों ने अपना 100 फीसदी दिया है।

म्यूजिक- फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर, गाने काफी अच्छे हैं। 'राकेट सैंया', 'लड्डू फट गए' गाने सुनने में अच्छे लगते हैं।

देखे या नहीं- जेंट्स प्रॉब्लम पर बनी यह फिल्म सेक्स कॉमेडी न बनाकर रोमांटिक कॉमेडी फिल्म बनाई गई है। यह नए तरह का प्रयोग है, आपको यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। फिल्म आपको पूरा एंटरटेनमेंट करेगी और ठहाके लगाने पर मजबूर कर देगी।

स्टार रेटिंग- इस फिल्म को मैं 3 स्टार दूंगी।

-ज्योति जायसवाल

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